साधु अगर दुसरे को नीचा दिखाने की प्रवृत्ति रखता है तो वह केवल साधारण मनुष्य है उसमें साधुता का कोई अंश नहीं है वह केवल अपने उदर की पूर्ति कर रहा है
बातो के साधु बहुत मिलते हैं
परंतु पेट से भी साधु होना चाहिए
जो केवल ऊपर से साधुता की बात कहता है और उन चीजों का सेवन करता है जो उसे नहीं करना चाहिए तो वह केवल पाखंड के अलावा कुछ नहीं कर रहा है
महत्वपूर्ण यह है कि हमें अपने जीवन में अच्छे आचरण अच्छा भोजन स्वातिक भोजन करना चाहिए ना कि मास भक्षण शराब भक्षण और किसी भी प्रकार का नशा इत्यादि नहीं करना चाहिए ।।
निर्वाणता अनुपम है बहुत झीनी है
जो अल्प आहारी है
जिसने अपने गतिमान को बस में कर रखा है
जिसने अपनी स्वास की गति पर अंकुश लगा रखा है नियंत्रण कर रखी हैशरे एक हल पल नल के लिए सतर्क है अलस साधु वहीं है
वही निर्वाणी है वही पीर है आजम है
सम्पूर्ण सृष्टि में अनेक प्रकार की योनी है
परंतु मनुष्य योनि सर्वोच्च है
माता पिता भाई बंधु हमें प्रत्येक योनि मिलते हैं
परंतु गुरु सेवा और ईश भक्ति की चेतना हमें केवल मनुष्य योनि ही मिलती हैनथ
इन बातों समझना अवश्य है
बिना किसी दिखावे के सच्चे मन बिना किसी स्वार्थ कामना से ईश भक्ति गुरु सेवा करे
जहाँ स्वार्थ कामना जन्म लेती है वह भक्ति पर एक अंकुश जन्म मारण का लग जाता है
क्योंकि यह कामक भक्ति कहलाती है
बिना किसी लोभ के मात्र ईश्वर के अगर हाथ भी जोडे तो वह कोटी यज्ञ सामन ही मानो वह एक झण हमारा जीवन उज्ज्वल बना सकता है
कोई हंस बना
कोई परमहंस बना
कोई बना है अघोरी
बिन गति भेदे कुछ नहीं मिलता सब बाता है कोरी।
ना जगत को चला सकता है
ना जगत का कोई पोसण कर सकता है
व्यर्थ के दंभ भरने से अच्छा है मोनी हो जाओ
कुछ ना मिले तो गम को खाओ।।
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रविवार, 29 मई 2016
""""" साधु """"
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