जय गुरु देव शास्त्र बताते हैं कि जिस प्रकार अस्त्र-शस्त्रों पर धार लगाकरउन्हें तेज तथा धारदार बनाया जाता है उसी प्रकार मंत्र के 10-संस्कार करके उसे भी प्रभावशाली, सिद्धिप्रद तथा चैतन्य बनादिया जाता है। प्रसिद्ध तंत्र ग्रन्थ 'मंत्र महोदधि' तथा 'शारदातिलक तंत्र' में मंत्र के 10-संस्कारों को सम्पादित करने के लिएजप की विधियां बताई गई है। सामान्य रूप से मंत्र संस्कारों कीप्रचलित विधियों का संक्षिप्त विवरण दिया जा रहा है।
(1) जनन :- केशर, चन्दन अथवा भस्म से बनाए गए मातृकायंत्र से मंत्र-वर्णों का पर्याय क्रम से उद्धार करना।
(2) जीवन :- सभी मंत्र वर्णों को पंक्तिक्रम से प्रणव से सम्पुटित करके 100 बार जपना ।
(3) ताडन :- मंत्र के वर्णों को भोजपत्र पर लिखकर प्रत्येक वर्ण को चन्दन, जल तथा वायुबीज से 100-बार ताडि़त करना।
(4) बोधन :- उक्तानुसार मंत्र वर्णों को लिखकर मंत्र के वर्ण संख्या के बराबर कनेर पुष्पों से अग्निबीज से हनन करना।
(5) अभिषेक :- कुशमूल से भोजपत्र पर मंत्र को लिखकर मंत्र वर्णों की संख्या के बराबर पीपल के पत्तों से सिंचन करना।
(6) विमलीकरण :- सुषुम्ना के मूल तथा मध्य में मंत्र का ध्यान करके ज्योतिमंत्र से जलाना।
(7) आप्यायन :- भोजपत्र पर लिखे मंत्र को ज्योतिमंत्र का 108-जप करके अभिमंत्रित करना।
(8) तर्पण :- उक्तानुसार मंत्र लिखकर मंत्र की वर्ण संख्या में ज्योतिमंत्र से मधु से तर्पण करना।
(9) दीपन :- अपने मूलमंत्र को प्रणव माया तथा लक्ष्मी बीज से सम्पुटित करके 108 बार जपना।
(10) गोपन :- अपने मंत्र को गुप्त रखना तथा मंत्र जपते हुए अपने मन तथा प्राण का सुषुम्ना में लय करना।
जिस प्रकार सद्गुरू से प्राप्त मंत्र अत्यन्त गोपनीय होता है उसी प्रकार मंत्र के 10-संस्कारों को भी गोपनीय तथा केवल गुरूमुख से ज्ञातव्य रखा गया है।
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