शनिवार, 3 दिसंबर 2016

रुद्राक्ष क्या है ? एवं इसके क्या महत्व हैं?

जैसा कि हम सभी जानते हैं।
कि... रुद्राक्ष के
बिना भगवान् भोलेनाथ
की चर्चा अधूरी ही जान
पड़ती है...
परन्तु, दरअसल रुद्राक्ष है क्या ...
इसके बारे में बहुत कम लोगों को ही ज्ञात है...!
रुद्राक्ष दो शब्दों से मिलकर बना है .....
और, इसका संधिविच्छेद
होता है....

रुद्र+अक्ष...!

अर्थात ....
रुद्र अर्थात भगवान शंकर व अक्ष अर्थात आंसू....।

मान्यता है कि.....भगवान शिव के नेत्रों से जल की कुछ
बूंदें भूमि पर गिरने से महान रुद्राक्ष अवतरित हुआ और भगवान
शिव की आज्ञा पाकर वृक्षों पर रुद्राक्ष फलों के रूप में
प्रकट हो गए।
यह माना जाता है कि.... रुद्राक्ष अड़तीस प्रकार के
हैं, जिनमें कत्थई वाले बारह प्रकार के
रुद्राक्षों की उत्पत्ति सूर्य के नेत्रों से, श्वेतवर्ण के
सोलह प्रकार के रुद्राक्षों की उत्पत्ति चन्द्रमा के
नेत्रों से तथा कृष्ण वर्ण वाले दस प्रकार के
रुद्राक्षों की उत्पत्ति अग्नि के नेत्रों से
होती है।
आइए जानें कि ....रुद्राक्षों के दिव्य तेज से आप कैसे दुखों से
मुक्ति पा कर सुखमय जीवन जीते हुए शिव
कृपा पा सकते हैं
हमारे धर्म ग्रथ कहते हैं कि ....
यथा च दृश्यते लोके रुद्राक्ष: फलद: शुभ:।
न तथा दृश्यते अन्या च मालिका परमेश्वरि:।।
अर्थात संसार में रुद्राक्ष की माला की तरह
अन्य कोई दूसरी माला फलदायक और शुभ
नहीं है।
उसी तरह....श्रीमद्-
देवीभागवत में लिखा है :
रुद्राक्षधारणाद्य श्रेष्ठं न किञ्चिदपि विद्यते।
अर्थात संसार में रुद्राक्ष धारण से बढ़कर श्रेष्ठ कोई
दूसरी वस्तु नहीं है।
ध्यान रहे कि ....रुद्राक्ष
की दो जातियां होती हैं- रुद्राक्ष एवं
भद्राक्ष
रुद्राक्ष के मध्य में भद्राक्ष धारण करना महान फलदायक होता है।
भिन्न-भिन्न संख्या में पहनी जाने
वाली रुद्राक्ष की माला निम्न प्रकार से फल
प्रदान करने में सहायक होती है जो इस प्रकार है
1 रुद्राक्ष के सौ मनकों की माला धारण करने से मोक्ष
की प्राप्ति होती है।
2 रुद्राक्ष के एक सौ आठ मनकों को धारण करने से समस्त कार्यों में
सफलता प्राप्त होती है। इस माला को धारण करने
वाला अपनी पीढ़ियों का उद्घार करता है।
3 रुद्राक्ष के एक सौ चालीस
मनकों की माला धारण करने से साहस, पराक्रम और
उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है।
4 रुद्राक्ष के बत्तीस दानों की माला धारण
करने से धन, संपत्ति एवं आयु में वृद्धि होती है।
5 रुद्राक्ष के 26 मनकों की माला को सर पर धारण
करना चाहिए।
6 रुद्राक्ष के 50 दानों की माला कंठ में धारण करना शुभ
होता है।
7 रुद्राक्ष के पंद्रह मनकों की माला मंत्र जप तंत्र
सिद्धि जैसे कार्यों के लिए उपयोगी होती है।
8 रुद्राक्ष के सोलह मनकों की माला को हाथों में धारण
करना चाहिए।
9 रुद्राक्ष के बारह दानों को मणि बंध में धारण करना शुभदायक
होता है।
10 रुद्राक्ष के 108, 50 और 27 दानों की माला धारण
करने या जाप करने से पुण्य
की प्राप्ति होती है।
अब अगर हम आस्था से इतर ....
इसकी वैज्ञानिकता की बात करें तो....
निश्चय ही आपको खुद के हिन्दू होने एवं अपने धर्म
ग्रंथों पर गर्व होगा....
क्योंकि... वैज्ञानिक परीक्षणों से ज्ञात हुआ है कि...
रुद्राक्ष में ""प्रभावशाली विद्युत् चुंबकीय
तत्व ( Electro Magnatic Property ) होते
हैं ...जो अनियमित ह्रदय को नियमित करने में
काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.... और, इसके कोई
विपरीत प्रभाव भी नहीं है...!
शायद इसीलिए.... अगल-अगल अवस्था में , रुद्राक्ष के
अलग -अलग मनका निर्धारित किये गए हैं.... साथ
ही.... रुद्राक्ष को .... अंगूठी में लगा कर
पहनने अथवा रात्रि में शयन करते समय धारण करने से निषेध
किया गया है...!
खैर....
वैज्ञानिकता से परिपूर्ण आस्था को आगे बढ़ाते हुए ... रुद्राक्ष के
बारे निःसंकोच कहा जा सकता है कि....
जो व्यक्ति पवित्र और शुद्ध मन से भगवान शंकर
की आराधना करके रुद्राक्ष धारण करता है, उसके
सभी कष्ट दूर हो जाते है..।
और, मान्यता तो यहाँ तक है कि..... इसके दर्शन मात्र से
ही पापों का क्षय हो जाता है.....।
इसीलिए , जिस घर में रुद्राक्ष
की पूजा की जाती है,
वहां लक्ष्मी जी का वास रहता है...।
रुद्राक्ष...... भगवान शंकर की एक अमूल्य और
अदभुत देन है और, यह भगवान् भोलेनाथ को अत्यंत प्रिय है.....
इसीलिए , इसके स्पर्श तथा इसके द्वारा जप करने से
ही समस्त पाप से निवृत्त हो जाते है और लौकिक
परलौकिक एवं भौतिक सुख
की प्राप्ति होती है...।

शिव, शिवलिंग और जुड़े अनुष्ठान

शिव कौन है? इस चित्रण में शिव को एक इंसान के रूप  बनाया गया था, या भारतीय प्राचीन ऋषियों द्वारा मानव जाति के लिए इस ब्रह्मांडीय चेतना को समझने के लिए  यह चित्र नियोजित किया गया था, । हम इस चित्रण के प्रत्येक पहलू का विश्लेषण करते हैं:
1. गंगा नदी सिर से बह रही है - जिसका अर्थ है; किसी भी व्यक्ति, जिसका शुद्ध विचार 365 दिनों के लिए एक सहज निर्बाध ढंग से व्यक्त किया जा रहा है; और जो कोई इस तरह के प्रवाह में एक डुबकी लेता है, दैवीय शुद्ध हो जाता है।
2. माथे पर आधा चाँद - जिसका अर्थ है; मन और अनंत शांति के साथ चित्त संतुलन।
3. तीसरा नेत्र - जिसका अर्थ है; जो अमोघ अंतर्ज्ञान की शक्ति के अधिकारी और भौंहों के मध्य से ब्रह्मांड को अनुभव-दर्शन करने की क्षमता है।
4. गले में नाग - जिसका अर्थ है; एकाग्रता की शक्ति और सांप की तीव्रता के साथ ध्यान में तल्लीन।
5. शरीर राख में लिपटे - किसी भी क्षण में मृत्यु के आगमन के बारे में  मनुष्य को भूल नहीं।
6. शिव द्वारा त्रिशूल की पकड़ - जिसका अर्थ है; ब्रह्मांड सर्वव्यापी परमात्मा्  की शक्ति द्वारा आयोजित किया जाता है और यह ब्रह्मांड मौलिक तीन क्षेत्रों (भौतिक, सूक्ष्म और कारण) में विभाजित है; जो अस्तित्व के आयाम हैं।
7. डमरू  त्रिशूल से बंधा - जिसका अर्थ है्; स्पंदन इस पूरे ब्रह्मांड की प्रकृति में है और सब कुछ आवृत्तियों में भिन्नता से बना है; सभी तीन क्षेत्र विभिन्न आवृत्तियों के बने होते हैं और ब्रह्मांडीय चेतना द्वारा प्रकट, एक साथ बंधे हैं।
8. शिव ऋषियों और राक्षसों के साथ समान रूप से  हैं - जिसका अर्थ है; निरपेक्ष चेतना या परमात्मा सभी आत्माओं का एकमात्र स्रोत है, इस प्रकार, अपने सभी बच्चों को प्यार करता है। हमारे कर्म हमें असुर या देवता बना रहे हैं।
9. शिव के साथ नशा - जिसका अर्थ है; शिव  (कूटस्थ चेतना) के साथ एक आत्मा के मिलन के समय में चमत्कारिक नशा, शराब की बोतलों के कई लाख से अधिक है।
10 कैलाश शिव का वास है - जिसका अर्थ है; शांत वातावरण में आध्यात्मिकता का घर है। शिव अकेले हिंदुओं के लिए नहीं हैं।
11. पार्वती शिव की पत्नी हैं - प्रकृति और ब्रह्मांडीय चेतना सदा एक दूसरे से विवाहित हैं। दोनों एक दूसरे से सदा अविभाज्य हैं। प्रकृति और परमात्मा का नृत्य एक साथ, क्योंकि, पूर्ण निरंतर चेतना (परम सत्य) ब्रह्मांडीय चक्र की शुरुआत में द्वंद्व पैदा करते हैं।
12. शिव योगी हैं - वह निराकार सभी रूपों में है। समाविष्ट आत्मा ( जीव), योग के विज्ञान के माध्यम से ब्रह्मांडीय चेतना के साथ एकता को प्राप्त करने के लिए है। योग ही उसका  सिद्धांत है।
13. ज्योतिर्लिंग ही शिव का प्रतीक है - लिंग एक संस्कृत शब्द है और इसका अर्थ "प्रतीक" होता है। ब्रह्मांडीय चेतना भौंहों के मध्य में गोलाकार प्रकाश के रूप में प्रकट होती है। यह आत्मबोध या आत्मज्ञान के रूप में कहा जाता है। समाविष्ट आत्मा प्रकृति के द्वंद्व और सापेक्षता की बाधाओं को पार करती है और मुक्ति को प्राप्त होती है।
14. शिवलिंग पर दूध डालना - सर्वशक्तिमान भगवान से प्रार्थना करना ; भौंहों के मध्य में, मेरे अंधकार को दूधिया प्रकाश में बदलना।शिवलिंग आमतौर पर काला इसलिए होता है क्योंकि साधारण मनुष्य के भ्रूमध्य में अन्धकार होता है जिसको दूधिया प्रकाश में बदलना ही मानव का वेदानुमत सर्वोत्तम कर्म है। इसका गीता में भी उल्लेख है।
15. शिवलिंग पर धतूरा  प्रसाद - भगवान से प्रार्थना, आध्यात्मिक नशा करने के लिए अनुदान।
16. शिव महेश्वर हैं - शिव परमेश्वर ( पारब्रह्म ) नहीं है,  क्योंकि परम चेतना अंतिम वास्तविकता है जो सभी कंपन से परे है। कूटस्थ चैतन्य एक कदम पहले है।
17. नंदी शिव के वाहन के रूप में - सांड धर्म का प्रतीक है। इस जानवर में लंबे समय तक के लिए बेचैनी के बिना शांति के साथ स्थिर खड़े़े रहने की अद्वितीय  और महत्वपूर्ण विशेषता है। स्थिरता - आध्यात्मिकता का वाहन है।
18. बाघ की छाल का आसन - प्राणिक प्रवाह का भूमि में निर्वहन रोकना आवश्यक।
19. राम और कृष्ण शिव भक्त - जब आकार में निराकार अवतरित होता है, मनुष्य के लिए अपनी असली पहचान स्थापित करता है।

कलियुग


पुराणों में चार युगों के विषय में बताया गया है, सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग। कलियुग को छोड़ दिया जाए तो तीनों ही युगों की अपनी-अपनी खासियत रही। परंतु कलियुग में खासियत जैसा तो कुछ नहीं दिखता, चारो ओर अहंकार, प्रतिशोध, लालच और आतंक ही दिखाई देता है। कलियुग को एक श्राप कहा जाता है, जिसे हर मौजूदा इंसान भुगत रहा है। हां, तकनीक का अत्याधिक विकास भी इसी युग में हुआ परंतु क्या केवल एक इसी बात के लिए हम हजारों नकारात्मक स्थितियों को नजरअंदाज कर पाएंगे? शायद ही कोई व्यक्ति इस सवाल का जवाब ‘हां’ में देगा।
🌻2. कैसे आया कलियुग?
क्या हमने कभी इस बात की ओर ध्यान दिया है कि ऐसा क्या कारण रहा होगा जिसके चलते कलियुग को धरती पर आना पड़ा? वह ना सिर्फ आया बल्कि यहां आकर यहीं का हो गया, तो आखिर क्या रहस्य है कलियुग के धरती पर आगमन के पीछे? चलिए आज हम आपको इसी रहस्य से अवगत करवाते हैं जो कलियुग के धरती आगमन के पीछे छिपा है।
🌻3. कलियुग की शुरुआत
महान गणितज्ञ आर्यभट्ट ने अपनी पुस्तक “आर्यभट्टियम” में इस बात का उल्लेख किया है कि जब वह 23 वर्ष के थे तब कलियुग का 3600वां वर्ष चल रहा था। आंकड़ों के अनुसार आर्यभट्ट का जन्म 476 ईसवीं में हुआ था। गणना की जाए तो कलियुग का आरंभ 3102 ईसापूर्व हो चुका था।
🌻4. पौराणिक कथा
लेकिन ये कलियुग धरती पर आया कैसे? इसके पीछे भी एक पौराणिक कथा विद्यमान है जो पांडवों के महाप्रयाण से जुड़ी है।
🌻5. महाप्रयाण
बात तब की है जब धर्मराज युधिष्ठिर अपना पूरा राजपाट परीक्षित को सौंपकर अन्य पांडवों और द्रौपदी समेत महाप्रयाण हेतु हिमालय की ओर निकल गए थे। उन दिनों स्वयं धर्म, बैल का रूप लेकर गाय के रूप में बैठी पृथ्वी देवी से सरस्वती नदी के किनारे मिले। गाय रूपी पृथ्वी के नयन आंसुओं से भरे हुए थे, उनकी आंखों से आंसू बह रहे थे।
🌻6. पृथ्वी देवी का दुख
पृथ्वी को दुखी देख धर्म ने उनसे उनकी परेशानी का कारण पूछा। धर्म ने कहा “देवी! तुम ये देख कर तो नहीं रो रही कि मेरा बस एक पैर है? या तुम इस बात से दुखी हो कि अब तुम्हारे ऊपर बुरी ताकतों का शासन होगा?
🌻7. सौभाग्य की समाप्ति
इस सवाल पर पृथ्वी देवी बोलीं “हे धर्म, तुम तो सब कुछ जानते हो, ऐसे में मेरे दुख का कारण पूछने से क्या लाभ”? सत्य, पवित्रता, क्षमा, दया, सन्तोष, त्याग, शास्त्र विचार, ज्ञान, वैराग्य, शौर्य, तेज, ऐश्वर्य, कान्ति, कौशल, स्वतंत्रता, निर्भीकता, कोमलता, धैर्य, साहस, उत्साह, कीर्ति, आस्तिकता, स्थिरता, गौरव, अहंकारहीनता आदि गुणों के स्वामी भगवान श्रीकृष्ण के स्वधाम जाने की वजह से कलियुग ने मुझ पर कब्जा कर लिया है। पहले भगवान कृष्ण के चरण मुझ पर पड़ते थे, जिसकी वजह से मैं खुद को सौभाग्यशाली मानती थी, परंतु अब ऐसा नहीं है, अब मेरा सौभाग्य समाप्त हो गया है।
🌻8. कलियुग का आगमन
धर्म और पृथ्वी आपस में बात कर ही रहे थे कि इतने में असुर रूपी कलियुग वहां आ पहुंचा और बैल और गाय रूपी धर्म और पृथ्वी को मारने लगा। राजा परीक्षित वहां से गुजर रहे थे, जब उन्होंने यह दृश्य अपनी आंखों से देखा तो कलियुग पर बहुत क्रोधित हुए। अपने धनुष पर बाण रखते हुए राजा परीक्षित ने कलियुग से कहा “दुष्ट, पापी! तू कौन है? इन निरीह गाय तथा बैल को क्यों सता रहा है? तू महान अपराधी है। तेरा अपराध क्षमा योग्य नहीं है, तेरा वध निश्चित है।“
🌻9. कलियुग के चरण
राजा परीक्षित ने बैल के स्वरूप में धर्म और गाय के स्वरूप में पृथ्वी देवी को पहचान लिया। परीक्षित राजा ने उनसे कहा “हे वृषभ! आप धर्म के मर्म को भली-भांति जानते हैं। इसलिए आप किसी के विषय में गलत ना कहते हुए अपने ऊपर अत्याचार करने वाले का नाम भी नहीं बता रहे हैं”। हे धर्म! सतयुग में आपके तप, पवित्रता, दया और सत्य चार चरण थे। त्रेता में तीन चरण रह गये, द्वापर में दो ही रह गये और अब इस दुष्ट कलियुग के कारण आपका एक ही चरण रह गया है। पृथ्वी देवी भी इसी बात से दुखी हैं”।
🌻10. कलियुग के अवगुण
इतना कहते ही राजा परीक्षित ने अपनी तलवार निकाली और कलियुग को मारने के लिए आगे बढ़े। राजा परीक्षित का क्रोध देखकर कलियुग कांपने लगा। कलियुग भयभीत होकर अपने राजसी वेष को उतार कर राजा परीक्षित के चरणों में गिर गया और क्षमा याचना करने लगा। राजा परीक्षित ने शरण में आए हुए कलियुग को मारना उचित न समझा और उससे कहा “हे कलियुग! तू मेरे शरण में आ गया है इसलिए मैं तुझे जीवनदान दे रहा हूं। किन्तु अधर्म, पाप, झूठ, चोरी, कपट, दरिद्रता आदि अनेक उपद्रवों का मूल कारण केवल तू ही है। तू मेरे राज्य से अभी निकल जा और फिर कभी लौटकर मत आना”।
🌻11. रहने का स्थान
परीक्षित की बात को सुनकर कलियुग ने कहा कि पूरी पृथ्वी पर आपका निवास है, पृथ्वी पर ऐसा कोई भी स्थान नहीं है जहां आपका राज्य ना हो, ऐसे में मुझे रहने के लिए स्थान प्रदान करें”।
🌻12. स्वर्ण
स्वर्ण
कलियुग के ये कहने पर राजा परीक्षित सोच ने किचार कर कहा “झूठ, द्यूत, मद्यपान, परस्त्रीगमन और हिंसा, इन चार स्थानों में असत्य, मद, काम और क्रोध का निवास होता है। तू इन चार स्थानों पर रह सकता है। परंतु इस पर कलियुग बोला - "हे राजन, ये चार स्थान मेरे रहने के लिए अपर्याप्त है, अन्य जगह भी प्रदान कीजिए मुझे”। इस मांग पर राजा परीक्षित ने उसे स्वर्ण के रूप में पांचवां स्थान प्रदान किया। स्वर्ण रूपी स्थान मिलते ही कलियुग ने राजा परीक्षित के सोने के मुकुट में वास कर लिया। कलियुग इन स्थानों के मिल जाने से प्रत्यक्षतः तो वहाँ से चला गया किन्तु कुछ दूर जाने के बाद अदृश्य रूप में वापस आकर राजा परीक्षित के स्वर्ण मुकुट में निवास करने लगा।
🌻13. मार्कण्डेय पुराण के अनुसार कलियुग
मार्कण्डेय पुराण में कलियुग की कुछ विशेषताओं का उल्लेख पहले ही किया जा चुका था। जिसके अनुसार कलियुग के दौरान शासक, जनता पर मनमाने ढंग से शासन करेंगे, मनचाहे ढंग से उन पर कर थोपेंगे। शासक, अपने राज्य में अध्यात्म की जगह भय का प्रसार करेंगे, वह स्वयं एक बहुत बड़ा खतरा बन जाएंगे।
🌻14. पलायन
बड़ी संख्या में पलायन शुरू हो जाएगा, लोग सस्ते खाद्य पदार्थ और सुविधाओं की तलाश में अपने घरों को छोड़कर जाने के लिए मजबूर होंगे।
🌻15. पश्चाताप का अभाव
धर्म को नजरअंदाज कर दिया जाएगा और लालच, सत्ता, पैसा, सभी के मस्तिष्क में प्रबल रूप से विद्यमान रहेगा। लोग बिना किसी पश्चाताप के अपराधी बनकर लोगों की हत्या करेंगे। ‘संभोग’ जिन्दगी की सबसे बड़ी जरूरत बन जाएगी।
🌻16. वचनों का टूटना
लोग बहुत आसानी से कसम खाएंगे और उसे तोड़ देंगे, वचनों का कोई अर्थ नहीं रह जाएगा। लोग मदिरा और अन्य नशीले पदार्थों की चपेट में आ जाएंगे। गुरुओं का सम्मान करने की परंपरा समाप्त हो जाएगी।
🌻17. चरम पर है पाप
ब्राह्मण ज्ञानी नहीं रहेंगे, क्षत्रियों का साहस खो जाएगा और वैश्य अपने व्यवसाय में ईमानदार नहीं रह जाएंगे। पाप अपने चरम पर होगा। यह सब तो हो ही रहा है। मजबूरी या मर्जी, हमने कलियुग को घर करने का मौका दे ही दिया है।

*सोच*

बारिश की दौरान सारे पक्षी आश्रय की तलाश करते है लेकिन बाज़ बादलों के ऊपर उडकर बारिश को ही avoid कर देते है। समस्याए common है, लेकिन आपका नजरिया इनमे difference पैदा करता है।

*हार ना मानना*

बीच रास्ते से लौटने का कोई फायदा नहीं क्योंकि लौटने पर आपको उतनी ही दूरी तय करनी पड़ेगी जितनी दूरी तय करने पर आप लक्ष्य तक पहुँच सकते है|

*असंभव*

इस दुनिया में असंभव कुछ भी नहीं| हम वो सब कर सकते है, जो हम सोच सकते है और हम वो सब सोच सकते है, जो आज तक हमने नहीं सोचा|

*समय*

आप यह नहीं कह सकते कि आपके पास समय नहीं है क्योंकि आपको भी दिन में उतना ही समय (24 घंटे) मिलता है जितना समय महान एंव सफल लोगों को मिलता है|

सोने का नियम और घर में मंदिर में आने जाने का नियम


सोने के लिए कुछ नियम है
जैसे कि आप सभी जानते हैं कि बाई नाक चन्द्र नाडी होती है तथा दाईं नाक से सूर्य नाड़ी होती है

दोपहर का भोजन जमीन पर चटाई लगाकर और खाने की थाली थोडा उचा रखकर सुखासन मे बैठकर भोजन
करें
दोपहर के भोजन के बाद 20-30 मिनट बाई करवट लेटे ताकि आपकी सूर्य नाड़ी सक्रिय हो जाये और भोजन पचाने में आसानी हो क्योंकि सूर्य नाडी आपकी पाचन क्रिया के लिए ह

श्याम के भोजन के 2 घंटे बाद ही शयन कक्ष में जाये और पहले 5-7 मिनट दाई करवट लेटे फिर 5-7 मिनट बाई करवट लेटे उसके बाद सीधे लेटकर शो जाये

दोनो समय के भोजन के बाद
दो काम अवश्य करें
पहला ये कि दोनो समय के भोजन के तुंरत बाद
पेशाब करने जाये जिससे आपका बडा हुआ रक्त चाप सामान्य हो जायेगा तथा उसके बाद
10-15 मिनट वज्रासन में बैठे

श्याम के भोजन के बाद 1000-1500 कदम अवश्य टहलें

अब बात करते हैं सोने की और दिशाओं की
हमेशा सोते समय सर दछिण दिशा में या पूर्व दिशा में ही रखे

जब भी आप घर से बाहर निकले
या घर में प्रवेश करे
मंदिर में प्रवेश करे या निकले
अपने व्यवसाय में जाये और वहां से निकले
कहि भी शुभ जगह जाये और वहां से आये

तो अपना दाहिने पैर को बाहर रखे
कारण ये है कि इससे आपकी चन्द्र नाडी सक्रिय होगी जिसके सक्रिय होते ही आपका मन, चित्त, प्रेम, करूणा, भाव,सब
अच्छा रहता है चन्द्र नाडी के सक्रिय होने से होता है

वैसै ही सूर्य नाडी यदि सक्रिय होती है तो आपको गुस्सा रहेगा मन अशांत रहेगा
कुछ भी उलटा सीधा करेगे लडाई झगड़ा भी सूर्य नाडी के सक्रिय होने के कारण ही होता है

तो आपका काम भी अच्छा होगा

जब भी आपका मन अशांत हो या या गुस्सा आये तो
सुखासन में बैठकर 5 मिनट दाई नाक को बंद करके बाई नाक से सास ले और छोडे इससे आपकी चन्द्र नाडी शुरू होगी और शांति मिलेगी

*मेहनत*

हम चाहें तो अपने आत्मविश्वास और मेहनत के बल पर अपना भाग्य खुद लिख सकते है और अगर हमको अपना भाग्य लिखना नहीं आता तो परिस्थितियां हमारा भाग्य लिख देंगी|

*विश्वास*


विश्वास में वो शक्ति है जिससे उजड़ी हुई दुनिया में प्रकाश लाया जा सकता है| विश्वास पत्थर को भगवान बना सकता है और अविश्वास भगवान के बनाए इंसान को भी पत्थर दिल बना सकता है|

*विश्वास*


विश्वास में वो शक्ति है जिससे उजड़ी हुई दुनिया में प्रकाश लाया जा सकता है| विश्वास पत्थर को भगवान बना सकता है और अविश्वास भगवान के बनाए इंसान को भी पत्थर दिल बना सकता है|

*जीवन*


जब तुम पैदा हुए थे तो तुम रोए थे जबकि पूरी दुनिया ने जश्न मनाया था। अपना जीवन ऐसे जियो कि तुम्हारी मौत पर पूरी दुनिया रोए और तुम जश्न मनाओ।

गौमूत्र के 22 रोचक गुण- जो आप नहीं जानते

गाय के गोबर में लक्ष्मी और मूत्र में गंगा का वास होता है, जबकि आयुर्वेद में गौमरस ूत्र के ढेरों प्रयोग कहे गए हैं। गौमूत्र का रासायनिक विश्लेषण करने पर वैज्ञानिकों ने पाया, कि इसमें 24 ऐसे तत्व हैं जो शरीर के विभिन्न रोगों को ठीक करने की क्षमता रखते हैं। आयुर्वेद के अनुसार गौमूत्र का नियमित सेवन करने से कई बीमारियों को खत्म किया जा सकता है। जो लोग नियमित रूप से थोड़े से गौमूत्र का भी सेवन करते हैं, उनकी रोगप्रतिरोधी क्षमता बढ़ जाती है। मौसम परिवर्तन के समय होने वाली कई बीमारियां दूर ही रहती हैं। शरीर स्वस्थ और ऊर्जावान बना रहता है। इसके कुछ गुण इस प्रकार गए हैं :-

1. गौ मूत्र कड़क, कसैला, तीक्ष्ण और ऊष्ण होने के साथ-साथ विष नाशक, जीवाणु नाशक, त्रिदोष नाशक, मेधा शक्ति वर्द्धक और शीघ्र पचने वाला होता है। इसमें नाइट्रोजन, ताम्र, फास्फेट, यूरिया, यूरिक एसिड, पोटाशियम, सल्फेट, फास्फेट, क्लोराइड और सोडियम की विभिन्न मात्राएं पायी जाती हैं। यह शरीर में ताम्र की कमी को पूरा करने में भी सहायक है।

2. गौमूत्र को न केवल रक्त के सभी तरह के विकारों को दूर करने वाला, कफ, वात व पित्त संबंधी तीनो दोषों का नाशक, हृदय रोगों व विष प्रभाव को खत्म करने वाला, बल-बुद्धि देने वाला बताया गया है, बल्कि यह आयु भी बढ़ाता है।

3. पेट की बीमारियों के लिए गौमूत्र रामवाण की तरह काम करता है, इसे चिकित्सीय सलाह के अनुसार नियमित पीने से यकृत यानि लिवर के बढ़ने की स्थिति में लाभ मिलता है। यह लिवर को सही कर खून को साफ करता है और रोग से लड़ने की क्षमता विकसित करता है।

4. 20 मिली गौमूत्र प्रात: सायं पीने से निम्न रोगों में लाभ होता है।

1. भूख की कमी, 2. अजीर्ण, 3. हर्निया, 4. मिर्गी, 5. चक्कर आना, 6. बवासीर, 7. प्रमेह, 8.मधुमेह, 9.कब्ज, 10. उदररोग, 11. गैस, 12. लूलगना, 13.पीलिया, 14. खुजली, 15.मुखरोग, 16.ब्लडप्रेशर, 17.कुष्ठ रोग, 18. जांडिस, 19. भगन्दर, 20. दन्तरोग, 21. नेत्र रोग, 22. धातु क्षीणता, 23. जुकाम, 24. बुखार, 25. त्वचा रोग, 26. घाव, 27. सिरदर्द, 28. दमा, 29. स्त्रीरोग, 30. स्तनरोग, 31.छिहीरिया, 32. अनिद्रा।

5. गौमूत्र को मेध्या और हृदया कहा गया है। इस तरह से यह दिमाग और हृदय को शक्ति प्रदान करता है। यह मानसिक कारणों से होने वाले आघात से हृदय की रक्षा करता है और इन अंगों को प्रभावित करने वाले रोगों से बचाता है।

6. इसमें कैसर को रोकने वाली ‘करक्यूमिन‘ पायी जाती है |

7. कैंसर की चिकित्सा में रेडियो एक्टिव एलिमेन्ट प्रयोग में लाए जाते है | गौमूत्र में विद्यमान सोडियम,पोटेशियम,मैग्नेशियम,फास्फोरस,सल्फर आदि में से कुछ लवण विघटित होकर रेडियो एलिमेन्ट की तरह कार्य करने लगते है और कैंसर की अनियन्त्रित वृद्धि पर तुरन्त नियंत्रण करते है | कैंसर कोशिकाओं को नष्ट करते है | अर्क आँपरेशन के बाद बची कैंसर कोशिकाओं को भी नष्ट करता है | यानी गौमूत्र में कैसर बीमारी को दूर करने की शक्ति समाहित है |

8. दूध देने वाली गाय के मूत्र में “लेक्टोज” की मात्रा आधिक पाई जाती है, जो हृदय और मस्तिष्क के विकारों के लिए उपयोगी होता है।

9. गाय के मूत्र में आयुर्वेद का खजाना है! इसके अन्दर ‘कार्बोलिक एसिड‘ होता है जो कीटाणु नासक है, यह किटाणु जनित रोगों का भी नाश करता है। गौमूत्र चाहे जितने दिनों तक रखे, ख़राब नहीं होता है।

10. जोड़ों के दर्द में दर्द वाले स्थान पर गौमूत्र से सेकाई करने से आराम मिलता है। सर्दियों के मौषम में इस परेशानी में सोंठ के साथ गौ मूत्र पीना फायदेमंद बताया गया है।

11. गैस की शिकायत में प्रातःकाल आधे कप पानी में गौ मूत्र के साथ नमक और नींबू का रस मिलाकर पीना चाहिए।

12. चर्म रोग में गौ मूत्र और पीसे हुए जीरे के लेप से लाभ मिलता है। खाज, खुजली में गौ मूत्र उपयोगी है।

13. गौमूत्र मोटापा कम करने में भी सहायक है। एक ग्लास ताजे पानी में चार बूंद गौ मूत्र के साथ दो चम्मच शहद और एक चम्मच नींबू का रस मिलाकर नियमित पीने से लाभ मिलता है।

14. गौमूत्र का सेवन छानकर किया जाना चाहिए। यह वैसा रसायन है, जो वृद्धावस्था को रोकता है और शरीर को स्वस्थ्यकर बनाए रखता है।

15.गौमूत्र किसी भी प्रकृतिक औषधी के साथ मिलकर उसके गुण-धर्म को बीस गुणा बढ़ा देता है| गौमूत्र का कई खाद्य पदार्थों के साथ अच्छा संबंध है जैसे गौमूत्र के साथ गुड़, गौमूत्र शहद के साथ आदि|

16.अमेरिका में हुए एक अनुसंधान से सिध्द हो गया है कि गौ के पेट में "विटामिन बी" सदा ही रहता है। यह सतोगुणी रस है व विचारों में सात्विकता लाता है।

17.गौमूत्र लेने का श्रेष्ठ समय प्रातःकाल का होता है और इसे पेट साफ करने के बाद खाली पेट लेना चाहिए| गौमूत्र सेवन के 1 घंटे पश्चात ही भोजन करना चाहिए|

18. गौमूत्र देशी गाय का ही सेवन करना सही रहता है। गाय का गर्भवती या रोग ग्रस्त नहीं होना चाहिए। एक वर्ष से बड़ी बछिया का गौ मूत्र बहुत लाभकारी होता है।

19. मांसाहारी व्यक्ति को गौमूत्र नहीं लेना चाहिए| गौमूत्र लेने के 15 दिन पहले मांसाहार का त्याग कर देना चाहिए| पित्त प्रकृति वाले व्यक्ति को सीधे गौमूत्र नहीं लेना चाहिए, गौमूत्र को पानी में मिलाकर लेना चाहिए| पीलिया के रोगी को गौमूत्र नहीं लेना चाहिए| देर रात्रि में गौमूत्र नहीं लेना चाहिए| ग्रीष्म ऋतु में गौमूत्र कम मात्र में लेना चाहिए|

20. घर में गौमूत्र छिड़कने से लक्ष्मी कृपा मिलती है, जिस घर में प्रतिदिन गौमूत्र का छिड़काव किया जाता है, वहां देवी लक्ष्मी की विशेष कृपा बरसती है।

21.गौमूत्र में गंगा मईया वास करती हैं। गंगा को सभी पापों का हरण करने वाली माना गया है, अत: गौमूत्र पीने से पापों का नाश होता है।

22.जिस घर में नियमित रूप से गौमूत्र का छिड़काव होता है, वहां बहुत सारे वास्तु दोषों का समाधान एक साथ हो जाता हैं